मुंबई जैसे शहर में अब शायरों की क़दर नहीं,
यहाँ इंसान के दिल में जस्बातों की बसर नहीं।
सब तो मसरूफ़ हैं यहाँ दौलत की तामीर बनाने में,
कौन 'मिर', कौन 'मिर्ज़ा' यहाँ किसी को ख़बर नहीं।
समझते नहीं मतलब किसी सरल 'मक़्ते' का ये,
नासमझ इन लोगों पर मेरे हर्फों का कोई असर नहीं।
'कामिल', 'क़ादरी', 'कुमार', लिख सके कोई इंसा ,
साहित्य से परेह हैं यहां लोग इनमे इतना हुन्नर नहीं।
अब चंद ही यहां हैं तेरी तरह बचे शायर 'अमित'
नज़्मों की परंपरा बचा सके तुझ अकेले में जिग़र नहीं।
~ अमित वाल्मीकि
यहाँ इंसान के दिल में जस्बातों की बसर नहीं।
सब तो मसरूफ़ हैं यहाँ दौलत की तामीर बनाने में,
कौन 'मिर', कौन 'मिर्ज़ा' यहाँ किसी को ख़बर नहीं।
समझते नहीं मतलब किसी सरल 'मक़्ते' का ये,
नासमझ इन लोगों पर मेरे हर्फों का कोई असर नहीं।
'कामिल', 'क़ादरी', 'कुमार', लिख सके कोई इंसा ,
साहित्य से परेह हैं यहां लोग इनमे इतना हुन्नर नहीं।
अब चंद ही यहां हैं तेरी तरह बचे शायर 'अमित'
नज़्मों की परंपरा बचा सके तुझ अकेले में जिग़र नहीं।
~ अमित वाल्मीकि
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